2:50 PM · Feb 24, 2022Twitter Web App @Rekhta
कुछ कम सी हो गई हैं उनकी मुस्कुराहटें ये गुल भी सोचते हैं बहारों को क्या हुआ इतरा के बोलता है वो अब सीख के उर्दू उलझी हुई नज़र के इशारों को क्या हुआ आहन की ये दीवार क्यूँ उठी है शहर में बेताब हवाओं की पुकारों को क्या हुआ
मायूस है अफ़्शाँ भी कुछ तो चाँद के बग़ैर अमावसों की रात सितारों को क्या हुआ
हाक़िम ने भी तो मयक़शी को जुर्म कर दिया मख़मूर इक निगाह के मारों को क्या हुआ
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
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..namastey!~