2:01 PM · Feb 23, 2022Twitter Web App @Rekhta
कैसी थी तिरी याद अब ये याद करूँ मैं मक़्तूल सी उस याद का क़ातिल कोई तो है
देखा है मैंने चाँद को ज़मीं पे टहलते और आसमां पे उसका मुक़ाबिल कोई तो है ये सोच के ही वो भी भंवर से निकल गया इक डूबती कश्ती का भी साहिल कोई तो है
आँखों में उनके दिख गई मेरी ही ये नज़र ऐसी निगह-ए-शौक़ का घायल कोई तो है
[ मक़्तूल > slain ]
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
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..namastey!~