गली से तिरी हो के ही गुज़रेंगे हम आगे
तुम बारिशों से भी कभी तो पूछ के देखो हम अब्र हैं प्यासों के ही बरसेंगे हम आगे हो रंग-ओ-बू से ख़ुशबुओं से राब्ता जिसको रही जो वो निगाह तो निखरेंगे हम आगे इस ज़िन्दगी की मुश्किलें भी होंगी यूँ फ़तेह ख़ुद को शिक़स्त दे के ही निकलेंगे हम आगे
शाख़ों से गुलों से जो मरासिम हैं निभाकर कुछ यूं ही पतझरों में ही बिखरेंगे हम आगे
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
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..namastey!~