बहते हैं जब आँखों के ग़म उल्फ़त की लहर में कश्ती दिलों की डूबती है एक नज़र में ~
नज़र में है जो अजनबी रस्ते के उस तरफ पोशीदा सा है ग़म कोई उसके भी जिगर में
अपने ही तमाशे कई हमने भी हैं देखे काली घनी उदास सी रातों के सेहर में
है इश्क़ फागुनों का , कोई इसका हल नहीं उठती है कोई आंच सी जब दोपहर में
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
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~ ज़ोया गौतम ' निहां '
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..namastey!~