URDU ~ POETRY__Draft
ये हुस्न ओ इश्क़ के ही तक़ाबुल की बात है अपने जुनूं में अब्र वो चंदा पे छा गया ~
( तक़ाबुल > encountering / standing face to face / The act of responding )
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
copyright Ⓒ zg 2022
ये हुस्न ओ इश्क़ के ही तक़ाबुल की बात है अपने जुनूं में अब्र वो चंदा पे छा गया ~
( तक़ाबुल > encountering / standing face to face / The act of responding )
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
copyright Ⓒ zg 2022
ख़ामोशियाँ किसी की हुईं इश्क़ की अदा इक अश्क़ अक्स था मगर उस दिल के हाल का ~
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
copyright Ⓒ zg 2022
ज़हर पी ले जो हंसकर इस जहाँ का कोई ऐसा मसीहा ढूंढते हैं
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
copyright Ⓒ zg 2022
(Today is the death anniversary of Mahatma Gandhi)
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
copyright Ⓒ zg 2022
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
copyright Ⓒ zg 2022
कर दूँ मैं ये ज़ाहिर के मुझे प्यार है तुमसे बस इश्क़ की ज़ुबान ये उर्दू नहीं आती ~
[ Published in @Rekhta 8:21 PM · Jan 28, 2022·Twitter Web App ]
शबनम है कहीं तो कहीं पे अश्क़ है उर्दू निकहत है दिलों की ज़ुबान ए इश्क़ है उर्दू ~
[ Published in @Rekhta 1:40 AM · Jan 29, 2022·Twitter Web App ]
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
copyright Ⓒ zg 2022
वो जिनके पैर थे ज़मीं उनकी वो जिनके पर थे आसमां उनका हो जिनके पास ख़यालों का हुनर फ़लक ज़मीं ये कहकशां उनका
( कहकशां > Galaxy- Milky way / फ़लक > Sky )
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
copyright Ⓒ zg 2022
चलो किसी दिन ज़ीस्त से मिलने सब कुछ खोकर यार चलें बेफ़िकरी में बेख़ुद होकर जहाँ से बे परवाह चलें ~
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
copyright Ⓒ zg 2022
ग़ालिब को जो ख़रीदता ख़रीदता भी क्या जज़्बात ओ ख़यालात ही जिंस-ए-वजूद थे
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
copyright Ⓒ zg 2022
यौम ए जमहूरिया की ये शगुफ़्तगी लिए
वतन के ज़र्रे ज़र्रे में वतन परस्त हैं ~( यौम ए जमहूरिया > Republic Day / शगुफ़्तगी > Delight )
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
copyright Ⓒ zg 2022
पर्दानशीनगी भी तो है हुस्न की अदा बादल जो सलीके से चाँद पे यूँ छा गए ~
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
copyright Ⓒ zg 2022 @Rekhta @tarksahitya @kavitaaayein
हुस्न तो हुस्न है तू क्यूँ सराब कहता है बेवफ़ा वो नहीं तिरी नज़र का धोखा है ~
- - - - - - -
शराब और सराब में है फ़र्क तो क्या है ये तिश्नगी दोनों ही से बढ़ती ही जाये है ~
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
copyright Ⓒ zg 2022 @Rekhta @tarksahitya @kavitaaayein
लगा के इश्क़ का इल्ज़ाम भुला देते हैं
यूँ किसी और की ख़ातिर तिरे मर जाने को ~~ ज़ोया गौतम ' निहां '
copyright Ⓒ zg 2022
{ zāhid sharāb piine de masjid meñ baiTh kar
yā vo jagah batā de jahāñ par ḳhudā na ho }~ ज़ोया गौतम ' निहां '
copyright Ⓒ zg 2022
URDU ~ POETRY__Draft
कुछ तो यूँ ही टूट गए और कुछ ने धड़कन ही खो दी
कितनों ने दिल गिरवी रक्खे उन आँखों की घात के नाम~ ज़ोया गौतम ' निहां '
copyright Ⓒ zg 2022
ज़रा सी बात उल्फ़त की जो बिगड़ी थी वो क्या सुधरी ग़िलाफों के ही कोने में छुपी बैठी थी क्या उभरी
न सोचा था के तुम होगे न सोचा था के ग़म होगा ये सारे ग़म हसीं हैं अब गले से मय जो क्या उतरी
वो आशुफ़्ता-सरी मेरी ये तेरा भी दिवानापन कोई जाने तो क्या जाने किसी पे क्या से क्या गुज़री वो कहने को तो किस्सा था महज़ कोई था अफ़साना ग़ज़ल से दर्द उठता था सितम ढाती थी क्या ठुमरी मुहब्बत ही तो लिक्खा था किसी काग़ज़ की कश्ती पर समंदर के तलातुम में वो यूँ डूबी वो क्या उबरी
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
copyright Ⓒ zg 2022
{ आशुफ़्ता-सरी : state of being in distress / affliction / _ तलातुम choppiness, ebb and flow, roughness (of the sea), high tide}