फ़क़ीरी में कोई अपना बेगाना क्यों नहीं होता
नया कोई भी दिल का ग़म पुराना क्यों नहीं होता
दो-हर्फ़ी ही सही आंसू तो फिर भी एक आंसू है
मुतअस्सिर हादसों से भी ज़माना क्यों नहीं होता
फ़ज़ाओं में बहारें हैं ये गुल भी हैं गुलिस्तां भी
मगर उनके बिना मौसम सुहाना क्यों नहीं होता
यूँ कहने को है सर पे छत है घर मेरा भी ये लेकिन
कहीं कोई भी इस दिल का ठिकाना क्यूँ नहीं होता
वो बचपन का ही किस्सा था के नींदें जिससे आती थीं
इन आँखों को सुला दे वो फ़साना क्यूँ नहीं होता
लबों पे दिल लगाने के ही नग़्मे रक्स करते हैं
दिलों के टूटने का भी तराना क्यों नहीं होता
[ दो-हर्फ़ी > brief-little / मुतअस्सिर > affected ]
A Tear would bring Happiness
( 𝑰𝒇 𝒚𝒐𝒖 𝒄𝒂𝒏 remove 𝒊𝒕 )
_-----------------------------------------
कभी यूं बेसबब भी मुस्कुराया कीजिये
फ़क़त इक दीद से ही ग़म भी कम हो जाएंगे
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
copyright Ⓒ zg 2022
No comments:
Post a Comment
..namastey!~