4:49 PM · Feb 19, 2022Twitter Web App @Rekhta
उठाते फिरते हैं अपनी ही लाशें लोग कैसे कोई ज़िंदा नहीं तो ज़िंदगानी किसलिए है
किसी ग़म के समंदर में जज़ीरा है मिरा दिल
हुई लहरों की ऐसी मेहरबानी किसलिए हैये कैसी आतिशी छाले पड़े हैं तन बदन में
लगाता आग ये आँखों का पानी किसलिए है
क़हत-साली के किस्से बिन तेरे हैं अब लबों पर
बहारों में भी ऐसी ही वीरानी किसलिए है
[ क़हत-साली : Famine-Drought ]
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
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..namastey!~