#LataMangeshkar #RipLataMangeshkar
फ़ज़ा में भी घटा में भी सदा वो जावेदाँ कुहुक उठा के वो तो लुभाता चला गया ~
उल्फ़त जिसे कहते हैं निभाता चला गया शबनम से अश्क़ गुल जो बहाता चला गया
टूटा हुआ सही मगर ये दिल तो दिल ही था रुकने को थी धड़कन वो चलाता चला गया इतने फ़रेब खा के भी तो दिल नहीं भरा दिल दिल फ़रेब को ही बुलाता चला गया ख्वाहिश ये रोशनी की भी कितनी फ़ुज़ूँ हुई मैं दिल को दिल्लगी में जलाता चला गया
किस किस के ग़म का मैं हिसाब जोड़ के देखूं जो याद था उसको भी भुलाता चला गया
ग़ैरत भी तो कलम की वो नीलाम कर गया मुंसिफ़ के क़सीदे जो सुनाता चला गया
' निहां ' ख़िज़ाँ की फ़िक्र से ग़ुंचे भी थे उदास अपनी हंसी से गुल वो खिलाता चला गया
{ फ़ुज़ूँ >Increasing- On the rise }
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
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..namastey!~