EDIT :
कांटे ये नफ़रतों के थे जब दिखे गुलाव बहारों में जीने के ये सलीके सीखे रहकर हमने ख़ारों में
1:09 PM · Feb 23, 2022Twitter Web App @Rekhta
[कांटे चुभते हैं नफ़रत के दिखते हैं गुलाब बहारों में रिसते ज़ख़्म लिए इंसां है ज़िंदा कैसे ख़ारों में ]
10:57 PM · Feb 22, 2022Twitter Web App @Rekhta
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
copyright Ⓒ zg 2022
No comments:
Post a Comment
..namastey!~