Tuesday, February 22, 2022

URDU ~ POETRY__Draft

 

EDIT :

कांटे ये नफ़रतों के थे जब दिखे गुलाव बहारों में जीने के ये सलीके सीखे रहकर हमने ख़ारों में

1:09 PM · Feb 23, 2022Twitter Web App  @Rekhta


[कांटे चुभते हैं नफ़रत के दिखते हैं गुलाब बहारों में रिसते ज़ख़्म लिए इंसां है ज़िंदा कैसे ख़ारों में ]

10:57 PM · Feb 22, 2022Twitter Web App @Rekhta




~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

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..namastey!~