Tuesday, February 15, 2022

URDU ~ POETRY__Draft

 











कभी जब बेसबब  हमसे वो यूँ ही रूठ जाए हैं 

बहारों के जनाज़े  हम ने  कन्धों पे  उठाए हैं 


सुना बिजली गिरी है कमनसीबों के मकानों पर 

ये किस रंजिश में उसने मुफ़लिसों के घर जलाए हैं 


तुम्हारे हिज्र का आलम यूँ गुज़रा है मिरे दिल पर 

के अपनी मौत के ही हमने भी  मातम मनाए हैं 


तिरी ज़ुल्फ़ें गिरीं  खुलकर तो हम भी सोचते रह गए 

किसी जलते हुए फागुन में बारिश की घटाएं हैं 


तेरी पलकें खुलें  तो सर्दियों की धूप होती है 

तेरी आँखें झुकें तो गर्मियों की  शब  के  साये हैं 


जो पत्ता शाख़ से यूँ टूट कर बिखरा मेरा दिल था  

किसी पतझर में हम भी तो ग़मों पर मुस्कुराए हैं 


थी पथरीली मिरी राहें तू जिनपर खुल के हँसता था  

हंसी के ऐसे झरनों में वो  पत्थर भी  नहाए हैं 


~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

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..namastey!~