Thursday, February 3, 2022

URDU ~ POETRY__Draft

 















आँखों की तेरी बात वो धुआं धुआं रही ख़ुशबू मगर इस इश्क़ की जवां जवां रही

था चाँद बहुत दूर बहुत दूर ही रहा क़ुर्बत ये चाँदनी से तो रवां रवां रही

लम्हा कोई तो शब के दर्मियाँ ही रुक गया कशिश वो साअतों की फिर ख़िज़ाँ ख़िज़ाँ रही

पलकों में जो उलझ गया वही मैं अश्क़ था बारिश में वो घटा ए ग़म गिराँ गिराँ रही

ख़ुद ही से रंजिशें रहें कहाँ तलक ' निहां ' उलझन कोई ऐसी ही तो मकां मकां रही


( क़ुर्बत > Intimacy / कशिश > Allurement-Magnetism साअतों > Moments / गिराँ > Heavy / )



~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

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..namastey!~