आँखों की तेरी बात वो धुआं धुआं रही
ख़ुशबू मगर इस इश्क़ की जवां जवां रही
था चाँद बहुत दूर बहुत दूर ही रहा
क़ुर्बत ये चाँदनी से तो रवां रवां रही
लम्हा कोई तो शब के दर्मियाँ ही रुक गया
कशिश वो साअतों की फिर ख़िज़ाँ ख़िज़ाँ रही
पलकों में जो उलझ गया वही मैं अश्क़ था
बारिश में वो घटा ए ग़म गिराँ गिराँ रही
ख़ुद ही से रंजिशें रहें कहाँ तलक ' निहां '
उलझन कोई ऐसी ही तो मकां मकां रही
( क़ुर्बत > Intimacy / कशिश > Allurement-Magnetism / साअतों > Moments / गिराँ > Heavy / )
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
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..namastey!~