URDU
उर्दू से उल्फतें मगर रदीफ़ है न क़ाफ़िया
दो लब्ज़ जानता हूँ एक जाम एक साक़िया
सफ़्हे पे लिक्खी नज़्म के बेज़ार किनारे पे था
चुपके से ग़म को पी गया हूँ मैं वही तो हाशिया
देखो ग़ज़ा के फूल से बारूद की महक उठी
टूटा खिलौना थाम के बच्चा पढ़े है मर्सिया
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
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