डूबा हूँ जब से इस क़दर उनके ख़याल में ये दिल कभी जुनूब में कभी शुमाल में
तुम चाँद को शब से निकाल कर के देख लो कोई तो बात होगी ऐसे बेमिसाल में
आख़िर है क्या तिलिस्म ये शबनम का फूल का ज़ाहिर है बात ये तो बस उनके विसाल में
मैं रात को दिन दिन को रात कहने लगा हूँ मेरा भी वही हाल है अब उनके हाल में
देखा है जब से मैंने फिर उस दिलफ़रेब को यक़ीन कर लिया है ख़ुदा के कमाल में
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
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..namastey!~