रौशन ही उसने ये शम'-ए-हयात क्या कर दी
आँखों से ही तारों की ये बारात क्या कर दी
मायूसियों से ही जहाँ भी थक सा गया था
यूँ मुस्कुरा के उसने क़ायनात क्या कर दी
मंतर है फूँक है के ये उसका तिलिस्म है नज़र मिला के उसने करामात क्या कर दी
मैं दिन में भी तो ख्वाबज़दा होने लगा हूँ ज़ुल्फ़ें ही खोल के ये उसने रात क्या कर दी
मुझ पर मु'आमला कोई अब दर्ज हुआ है मुंसिफ़ से रहज़नी की मैंने बात क्या कर दी
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~ ज़ोया गौतम ' निहां '
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..namastey!~