3:59 PM · Feb 10, 2022Twitter Web App @Rekhta
हुए नैनों के भी सौदे बेमतलब के बहानों में हो फ़ुर्सत तो वो आते हैं यूँ नुक्कड़ की दुकानों में
सहारा ग़म को मिल जाए कोई ग़म-ख़्वार ऐसा हो पिघल जाते हैं दुःख मेरे कभी दिलबर के शानों में
निगाहें ख़ूबसूरत हैं ये हसरत है मेरे दिल में क़फ़स आँखों को तुम कर लो रहें हम क़ैदख़ानोँ में
ये साँसों का तलातुम भी तिरी यादों की धड़कन भी सफ़ीना दिल का डूबा है यूँ सीने के उफानों में
सुबह फिर आई है फिर ये परिंदे चहचहाते हैं मगर क्या लोग भी हैं मुतमइन अपने ठिकानों में
[ ग़म-ख़्वार > sympathizer / क़फ़स >prison / तलातुम > sea storm tempest ]
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
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..namastey!~