है आरज़ू यही के तू हो आरज़ू मिरी
है कहकशां के बाद भी तो जुस्तुजू मिरी
शिकार जो यूँ हो गयीं मुहब्बतें यहाँ
अब जंगलों में घूमती है मुश्क़ बू मिरी
ये रूह की ही ओढ़नी क़तर गया कोई
तो किस तरह से ज़िन्दगी ये हो रफ़ू मिरी
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
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..namastey!~