होगी धड़कन में हरारत मगर ऐसे ही नहीं चाहिए दिल को भी दिलबर तेरे जैसा ही कहीं
जिस्म की उस तलब को प्यार वो कहता कैसे उसे जज़्बात की रूहानियत पे ही था यक़ीं
ज़रा ग़ालिब को भी पढ़िए हसीन शामों को के हर इक बात में निकहत है कोई दिलनशीं
वक़्त रहते तो कभी तू भी मुहब्बत कर ले ढल गए दिन तो रहेगी यही दो-गज़ की ज़मीं
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
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..namastey!~