Thursday, February 17, 2022

URDU ~ POETRY__Draft




 










शहर कैसा है सहमे से वो अपने घर को जाते हैं 

ये ढलती शाम और पंछी शजर पे चहचहाते हैं 


मनाज़िर उस करिश्मे के हुए क़ुदरत  को यूँ  हासिल  

कभी पत्थर पे ही खिल के  ये गुल भी  खिलखिलाते हैं 


कभी मिल  जाए जो नर्गिस यकायक इक  बयाबां में 

तो अपनी धुन में ही भँवरे भी  क्या क्या गुनगुनाते हैं 


दिसंबर फिर जगाएगा ज़ुबाँ पर स्वाद सरसों का 

 वा जब करती है  गिद्दे तो मक्के लहलहाते हैं 


' निहां 'कजरारी आँखों में किसी क़तरे की थी झिलमिल 

उसी क़तरे के कितने अक्स शब में जगमगाते हैं  



( मनाज़िर > Scenes )

~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

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..namastey!~