Monday, January 31, 2022

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ये हुस्न ओ इश्क़ के ही तक़ाबुल की बात है अपने जुनूं में अब्र वो चंदा पे छा गया ~


( तक़ाबुल > encountering / standing face to face  / The act of responding )


~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

copyright Ⓒ zg 2022

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ख़ामोशियाँ किसी की हुईं इश्क़ की अदा इक अश्क़ अक्स था मगर उस दिल के हाल का ~


~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

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Sunday, January 30, 2022

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ज़हर पी ले जो हंसकर इस जहाँ का कोई ऐसा मसीहा ढूंढते हैं


~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

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(Today is the death anniversary of Mahatma Gandhi)


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किससे कहें ये हाल दिल के इज़्तिराब के हटते नहीं नज़ारे अब ये तेरे ख़्वाब के

चेहरे से जिसके चाँद को भी रश्क बहुत है शब शब कहाँ बग़ैर अब उस माहताब के

जमा बकाये का नहीं ये मामला कोई उल्फत में क्यूँ करें जतन ये एहतिसाब के

आँखों के वो सवाल उन आँखों के लिए थे कबसे हैं मुंतज़िर हम उनके इक जवाब के



~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

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Saturday, January 29, 2022

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ज़रा सम्हाल के ज़मीं पे पांव रखियेगा न जाने किसके अश्क़ से ये ख़ाक भी नम है ~



( रखिये ज़मीं पे ये कदम आहिस्ता से अश्कों से हुयी ख़ाक नम आहिस्ता से )

~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

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Friday, January 28, 2022

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कर दूँ मैं ये ज़ाहिर के मुझे प्यार है तुमसे बस इश्क़ की ज़ुबान ये उर्दू नहीं आती ~


[ Published in @Rekhta 8:21 PM · Jan 28, 2022·Twitter Web App ]


शबनम है कहीं तो कहीं पे अश्क़ है उर्दू निकहत है दिलों की ज़ुबान ए इश्क़ है उर्दू ~


[ Published in @Rekhta 1:40 AM · Jan 29, 2022·Twitter Web App ]


~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

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वो जिनके पैर थे ज़मीं उनकी वो जिनके पर थे आसमां उनका हो जिनके पास ख़यालों का हुनर फ़लक ज़मीं ये कहकशां उनका


( कहकशां > Galaxy- Milky way / फ़लक > Sky )


~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

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तन्हा वो पेड़ था मिरे बचपन का हमनशीं रविश हवा की देख के शजर गिरा गए ~


( हवा से क्या गिला था जो शजर गिरा गए )


( रविश > Behaviour / शजर > Tree )

~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

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Thursday, January 27, 2022

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चलो किसी दिन ज़ीस्त से मिलने सब कुछ खोकर यार चलें बेफ़िकरी में बेख़ुद होकर जहाँ से बे परवाह चलें ~


~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

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Wednesday, January 26, 2022

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ग़ालिब को जो ख़रीदता ख़रीदता भी क्या जज़्बात ओ ख़यालात ही जिंस-ए-वजूद थे


~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

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REPUBLIC DAY 26-01-2022

 

यौम ए जमहूरिया की ये शगुफ़्तगी लिए

वतन के ज़र्रे ज़र्रे में वतन परस्त हैं ~



( यौम ए जमहूरिया > Republic Day / शगुफ़्तगी > Delight )


~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

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पर्दानशीनगी भी तो है हुस्न की अदा बादल जो सलीके से चाँद पे यूँ छा गए ~


~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

copyright Ⓒ zg 2022  @Rekhta  @tarksahitya @kavitaaayein

Monday, January 24, 2022

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हुस्न तो हुस्न है तू क्यूँ सराब कहता है बेवफ़ा वो नहीं तिरी नज़र का धोखा है ~

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शराब और सराब में है फ़र्क तो क्या है ये तिश्नगी दोनों ही से बढ़ती ही जाये है ~


~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

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लगा के इश्क़ का इल्ज़ाम भुला देते हैं

यूँ किसी और की ख़ातिर तिरे मर जाने को ~


बारीक़ियाँ समझ लें चलो ज़िन्दगी की हम फिर मौत की तफ़्सील से होगा तो क्या होगा ~

~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

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Sunday, January 23, 2022

URDU ~ POETRY__Draft _ zāhid sharāb piine de

 

{ zāhid sharāb piine de masjid meñ baiTh kar

yā vo jagah batā de jahāñ par ḳhudā na ho }
पीने का शौक़ है तुझे मस्जिद में किसलिए आख़िर वो नशा क्या के जिसमे मुस्तफा न हो ~

~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

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कुछ तो यूँ ही टूट गए और कुछ ने धड़कन ही खो दी

कितनों ने दिल गिरवी रक्खे उन आँखों की घात के नाम


कुछ भी नहीं था बस इक दिल के उल्टे सीधे अरमां थे कितना बकाया निकला है अब मेरे ही जज़्बात के नाम ~

~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

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Saturday, January 22, 2022

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ज़रा सी बात उल्फ़त की जो बिगड़ी थी वो क्या सुधरी ग़िलाफों के ही कोने में छुपी बैठी थी क्या उभरी


न सोचा था के तुम होगे न सोचा था के ग़म होगा ये सारे ग़म हसीं हैं अब गले से मय जो क्या उतरी


वो आशुफ़्ता-सरी मेरी ये तेरा भी दिवानापन कोई जाने तो क्या जाने किसी पे क्या से क्या गुज़री वो कहने को तो किस्सा था महज़ कोई था अफ़साना ग़ज़ल से दर्द उठता था सितम ढाती थी क्या ठुमरी मुहब्बत ही तो लिक्खा था किसी काग़ज़ की कश्ती पर समंदर के तलातुम में वो यूँ डूबी वो क्या उबरी


~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

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{ आशुफ़्ता-सरी : state of being in distress / affliction  / _ तलातुम choppiness, ebb and flow, roughness (of the sea), high tide}