Saturday, January 22, 2022

URDU ~ POETRY__Draft

 

URDU ~ POETRY__Draft









ज़रा सी बात उल्फ़त की जो बिगड़ी थी वो क्या सुधरी ग़िलाफों के ही कोने में छुपी बैठी थी क्या उभरी


न सोचा था के तुम होगे न सोचा था के ग़म होगा ये सारे ग़म हसीं हैं अब गले से मय जो क्या उतरी


वो आशुफ़्ता-सरी मेरी ये तेरा भी दिवानापन कोई जाने तो क्या जाने किसी पे क्या से क्या गुज़री वो कहने को तो किस्सा था महज़ कोई था अफ़साना ग़ज़ल से दर्द उठता था सितम ढाती थी क्या ठुमरी मुहब्बत ही तो लिक्खा था किसी काग़ज़ की कश्ती पर समंदर के तलातुम में वो यूँ डूबी वो क्या उबरी


~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

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{ आशुफ़्ता-सरी : state of being in distress / affliction  / _ तलातुम choppiness, ebb and flow, roughness (of the sea), high tide}



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..namastey!~