URDU ~ POETRY__Draft
रग़बत के पेंच ऐसे लगाने नहीं आते ऐ यार मुझे वैसे बहाने नहीं आते
जिस ख्वाब की हसरत में यूँ खाये फ़रेब हैं
नींदों में अब वो ख़्वाब सुहाने नहीं आते
आते थे कभी लोग वही अपनी ग़रज़ से
काँधे पे जनाज़ा भी उठाने नहीं आते
खिलता हुआ वो फूल ज़मीँ पर जो गिर गया उस फूल को ज़ुल्फ़ों में सजाने नहीं आते
ये शुबह क्यूँ ' निहां ' है अभी दिल में, सोचिये क्यूँ ईद दिवाली भी मनाने नहीं आते ~
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
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..namastey!~