Thursday, January 6, 2022

 GHAZAL . draft / URDU_ Poetry


अँधेरी रात पे इलज़ाम ए  बेवफाई है

मेरी जो चाँद से थोड़ी सी शनासाई है 

 


मेरी तन्हाई भी तो  मुझ पे तंज़ करती है

लोग कहते हैं के ये तेरी भी रुस्वाई है

ये शब् हिजाब है जिसमे ये चाँद निकला है

उस ही की दीद से तो जान पे बन आई है


कूकती आम की शाखों से ‘निहां’  कोयल है

लिए फागुन के  तराने कोई  शहनाई है


~ ज़ोया गौतम 'निहां'


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..namastey!~