Wednesday, January 19, 2022

 

URDU ~ POETRY__Draft






ये आँखों से ग़ज़ल कहके चला कोई मगर कैसे के आहिस्ता से होती है ग़ज़ल गोई मगर कैसे


हवाओं में उतरता है ये किस के ग़म का अफ़साना लो बिखरी फिर फ़ुसूँ-साज़ी घटा रोयी मगर कैसे


ये कांटे भी तो मिलते हैं गुलिस्ताँ में मेरे यारो फ़सल खुशबू की उसने फिर से है बोई मगर कैसे सुला देती थी आँखों को निहां बचपन की इक लोरी वो फ़ितरत फिर से रातों में नहीं सोयी मगर कैसे ~

( के बेचैनी वो रातों की नहीं सोयी मगर कैसे )


~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

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[ फ़ुसूँ-साज़: Enchanter-Sorcerer ]





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..namastey!~