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{ REF : नहीं है ना-उमीद 'इक़बाल' अपनी किश्त-ए-वीराँ से
ज़रा नम हो तो ये मिट्टी बहुत ज़रख़ेज़ है साक़ी ~अल्लामा इक़बाल }ज़रख़ेज़ है मिट्टी चलो इतना तो समझ लें
उगती है फसल पर कोई मज़हब नहीं उगता
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
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[ किश्त-ए-वीराँ - barren Land / ज़रख़ेज़ - Fertile ]
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..namastey!~