12:54 AM · Mar 10, 2022Twitter Web App @Rekhta
कैसे बादल ग़मों के छाए हैं
न वो भूले से मुस्कुराए हैं
हमने कैसे उजाले चाहे थे
जो यूँ अपने ही घर जलाये हैं
नशा वो नज़र से पिलाने लगे हैं
तो हम मय-कशी को भुलाने लगे हैं
अंधेरों का भी मैं हुआ मुंतज़िर हूँ
दिये वो नज़र से जलाने लगे हैं
ये उजड़ा हुआ दिल लगे ख़ुशनुमा सा
वो वीरानियों में जो आने लगे हैं
वो सौंधी महक बारिशों की वो चाहें
वो ज़ुल्फ़ों से अपनी जगाने लगे हैं
लो मेरे ग़मों पे भी बिजली गिरी है वो भूले से अब मुस्कुराने लगे हैं मुहब्बत हुई है उन्हें हमने जाना परिंदे बगीचों में गाने लगे हैं
हबीब-ए-ख़ुदा ने जो चाहा तो देखो वो हाथों में मेहँदी लगाने लगे हैं
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
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..namastey!~