12:58 AM · Mar 7, 2022Twitter Web App
ग़म ए दिल जब बयां से उठता है
इक उजाला शमा से उठता है
उस ने रुत की तरह बदले तेवर यूँ ही गुल गुलसितां से उठता है कुछ तो होता है मुझको नींदों में नाम तेरा ज़ुबाँ से उठता है सच में हो जाए ग़र मुहब्बत ये नूर फिर जिस्मो-जां से उठता है
अब्र में अक्स था निहां उनका चाँद फिर कहकशां से उठता है
कैसे समझाए जंग को कोई ये धुआं आशियाँ से उठता है
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
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..namastey!~