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इन ग़मों का हर अँधेरा दूर करने को प्रिये
तेरे अधरों की ये हल्की मुस्कुराहट ही बहुत है
चुप सा है आँगन मेरा इस मौन में संगीत भरने
चम्पई पैरों में पायल की ये आहट ही बहुत है
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
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..namastey!~