4:03 PM · Mar 24, 2022Twitter Media Studio
जानते हैं चाँद से उनकी शिक़ायत को मगर क्यों उठाएं इश्क़ की ऐसी मुसीबत को मगर
नफ़रतों की बोलियां तो राख कर देंगी हमें
जुर्म का दर्जा दिया है किसने उल्फ़त को मगरक़ैद में दिल के अंधेरों की शुआएं प्यार की
इस क़फ़स से छूटना है ऐसी हसरत को मगर
सोचता हूँ मैं मुहब्बत में ग़मों को छोड़ दूँ
चाह बैठे ग़म भी मेरे इस मुहब्बत को मगर
ख़ुम भी था साग़र भी था पर प्यास मेरी ना बुझी
वो समंदर जानता है मेरी फ़ितरत को मगर
एक ही मेहबूब है और एक ही है आशिक़ी
फ़र्क़ करके देखते हैं वो इबादत को मगर
था उजाला था वो साया साथ मेरा भी तो था
आज़माते हैं अँधेरे ऐसी निस्बत को मगर
[शुआएं_rays क़फ़स _ prison
ख़ुम a pot of wine, wine barrel ]
~ ज़ोया गौतम ' निहां '
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..namastey!~