Thursday, March 24, 2022

नफ़रतों की बोलियां तो राख कर देंगी हमें


4:03 PM · Mar 24, 2022Twitter Media Studio  


जानते हैं चाँद से उनकी शिक़ायत को मगर क्यों उठाएं इश्क़ की ऐसी मुसीबत को मगर


नफ़रतों की बोलियां तो राख कर देंगी हमें

जुर्म का दर्जा दिया है किसने उल्फ़त को मगर


क़ैद में दिल के अंधेरों की शुआएं प्यार की इस क़फ़स से छूटना है ऐसी हसरत को मगर

सोचता हूँ मैं मुहब्बत में ग़मों को छोड़ दूँ चाह बैठे ग़म भी मेरे इस मुहब्बत को मगर

ख़ुम भी  था साग़र   भी  था पर प्यास मेरी ना बुझी
वो  समंदर  जानता है मेरी फ़ितरत को मगर 

एक ही मेहबूब है और एक ही है आशिक़ी फ़र्क़ करके देखते हैं वो इबादत को मगर

था उजाला था वो साया साथ मेरा भी तो था आज़माते हैं अँधेरे ऐसी निस्बत को मगर

[शुआएं_rays क़फ़स _ prison
ख़ुम a pot of wine, wine barrel ]

~ ज़ोया गौतम ' निहां ' 

copyright Ⓒ zg 2022

No comments:

Post a Comment

..namastey!~